भारत में ऐसी कई जगहें हैं जहां पर कुछ ना कुछ अनोखा देखने या सुनने को मिल जाता है. ऐसे ही एक जगह भारत में है जहां रहने के लिए ना किसी जाति ना किसी धर्मं की जरूरत है. वहां के लोग बिना भेदभाव के पूर्ण शांति के साथ रहते हैं. हम बात कर रहे हैं ऑरोविले शहर की, जो पुडुचेरी के पास तमिलनाडु राज्य के विलुप्पुरम जिले में स्थित है.
इस शहर का निर्माण मीरा अल्फासा ने 28 फरवरी 1968 में किया था. इस शहर को रोजर एंगर ने डिजाइन किया था. इस शहर की स्थापना करने वाली मीरा का मानना था कि यह यूनिवर्सल टाउनशिप भारत में बदलाव की हवा लाएगा. ऑरोविले में पूरी दुनिया के 50 अलग-अलग देशों से लोग आते हैं. हर जाति, वर्ग, समूह, पंथ और धर्म के लोग यहां रहते हैं. यहां फिलहाल सिर्फ 2,400 लोग रहते हैं.
इस शहर की ख़ास बात यह है कि यहां पर किसी तरह की करेंसी नहीं चलती. लोग कुछ भी सामान खरीदने के लिए ऑनलाइन ट्रांजैक्शन करते हैं. इसके अलावा यहां पर एक मंदिर है जिसका नाम मातृमंदिर है. हालांकि इसमें कोई भगवान नहीं है बल्िक लोग यहां आकर योग और एक्सरसाइज करते हैं. मातृमंदिर का अपना एक सौर ऊर्जा संयंत्र है और यह साफ़-सुथरे बगीचों से घिरा है इसके अलावा यहां बिजली की कोई समस्या नहीं है. इसके अलावा इस शहर का अपना टाउन प्लानिंग विभाग है जो शहर की रूपरेखा तैयार करता है.
ऑरोविले बायोगैस, सौर और पवन ऊर्जा का इस्तेमाल कर ना सिर्फ अपनी जरूरतें पूरी कर रहा है बल्कि अतिरिक्त बिजली तमिलनाडु सरकार को बेचने की तैयारी कर रहा है. यहां रिहायशी इकाइयों पर लगे सौर ऊर्जा संयंत्रों के अलावा पवन ऊर्जा चालित 40 पंपसेट तथा सौर ऊर्जा चालित 200 पंपसेट भी हैं. साथ ही 75 सोलर कुकर और 25 बायोगैस प्लांट हैं. श्री अरबिन्दो इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ एजुकेशनल रिसर्च की तत्वाधान में ऑरोविले अपने यहां तथा आसपास विभिन्न शैक्षणिक संस्थान चलाता है.
यहां अतिथि निवास, भवन निर्माण इकाइयां, सूचना प्रौद्योगिकी, लघु एवं मध्य स्तरीय व्यवसाय, लेखन सामग्रियों के लिए हस्त निर्मित कागज़ आदि जैसे उत्पादों का निर्माण किया जाता है. और साथ ही यहां की प्रसिद्ध अगरबत्तियों का भी उत्पादन होता है जिसे ऑरोविले की दुकान से खरीदा जा सकता है.