देश के पूर्व राष्ट्रपति दिवंगत प्रणब मुखर्जी की किताब ‘द प्रेसिडेंशियल इयर्स’ कल मार्केट में बिक्री के लिए आ चुकी है. अपनी इस किताब में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सलाह देते हुए लिखा है कि उन्हें असहमति के स्वर भी सुनना चाहिए. विपक्ष काे राजी करने और देश के सामने अपनी बात रखने के लिए संसद में और ज्यादा बाेलना चाहिए. मोदी की केवल माैजूदगी ही संसद के काम में बहुत बदलाव ला सकती है.’
आगे प्रणब ने लिखा है – ‘पूर्व प्रधानमंत्रियाें- जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी या मनमाेहन सिंह, इन सभी ने संसद में उपस्थिति महसूस कराई है. प्रधानमंत्री माेदी काे अपने दूसरे कार्यकाल में इनसे प्रेरणा लेकर संसद में माैजूदगी बढ़ानी चाहिए.’ प्रणब की किताब के हिसाब से – ‘मोदी सरकार अपने पहले कार्यकाल में संसद को सुचारू रूप से नहीं चला सकी. इसकी वजह उसका अहंकार और अकुशलता है.’
आगे उन्होंने लिखा – ‘मोदी ने 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी की घोषणा की, लेकिन इससे पहले मुझसे (तब प्रणब राष्ट्रपति थे) ही इस मुद्दे पर चर्चा नहीं की. हालांकि, इससे मुझे कोई हैरानी नहीं हुई, क्योंकि ऐसी घोषणा के लिए आकस्मिकता जरूरी है.’ इस समय का अपना अनुभव साझा करते हुए उन्होंने लिखा है – ‘मैं UPA सरकार के समय विपक्ष के साथ लगातार संपर्क में रहता था. संसद चलाने का प्रयास करता था. सदनों में पूरे वक्त माैजूद रहता था.’
इसके साथ ही अपनी किताब में प्रणब ने एक और चौंकाने वाला दावा किया है. किताब के मुताबिक, ‘नेपाल भारत का राज्य बनना चाहता था, लेकिन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने नेपाल के राजा त्रिभुवन बीर बिक्रम शाह के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था. इस पर नेहरू की प्रतिक्रिया थी कि नेपाल एक स्वतंत्र राष्ट्र है. उसे हमेशा ऐसे ही रहना चाहिए.’ आगे प्रणब ने लिखा है – ‘अगर पंडित नेहरू की जगह इंदिरा गांधी होतीं, तो शायद वे अवसर का फायदा उठातीं, जैसा उन्होंने सिक्किम के साथ किया.’
इसके अलावा प्रणब के मुताबिक – ‘मुझे लगता है कि मेरे राष्ट्रपति बनने के बाद कांग्रेस ने पॉलिटिकल फोकस खो दिया. पार्टी ये पहचान नहीं पाई कि उसका करिश्माई नेतृत्व खत्म हो चुका है. यही 2014 के लोकसभा में उसकी हार के कारणों में से एक रहा होगा. उन नतीजों से मुझे यह राहत मिली की निर्णायक जनादेश आया, लेकिन मेरी पार्टी रही कांग्रेस के प्रदर्शन से निराशा हुई.’